Chaitanya Mahaprabhu: कौन थे चैतन्य महाप्रभु, जो अपनी भक्ति के कारण कहे गए भगवान श्री कृष्ण के अवतार; पढ़ें उनके बारे में सबकुछ

Chaitanya Mahaprabhu: कौन थे चैतन्य महाप्रभु, जो अपनी भक्ति के कारण कहे गए भगवान श्री कृष्ण के अवतार; पढ़ें उनके बारे में सबकुछ

मेरा सनातन डेस्क। भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु 15वीं सदी के महान भारतीय संत थे जिन्होंने वृंदावन की खोज की थी। इनको भगवान श्रीकृष्ण का परम भक्त कहा जाता है क्योंकि महाप्रभु चैतन्य की भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति ने उन्हें भक्तों के बीच भगवान कृष्ण के अवतार की उपाधि दिलाई। चैतन्य महाप्रभु बंगाल के रहने वाले थे जो बाद में पुरी धाम में बस गए थे और उनकी मृत्यु भी पुरी धाम में हुई थी। 

'हरे कृष्णा हरे राम' के जनक हैं चैतन्य महाप्रभु

श्री चैतन्य महाप्रभु गौड़ीय वैष्णववाद (बंगाली वैष्णववाद) के जनक हैं और उन्होंने लोकप्रिय मंत्र "हरे कृष्ण" और भक्ति योग या मार्ग का प्रचार किया। महाप्रभु को उनके जीवनकाल में लोग निमाई, गौरांग, गौरा और गौरसुन्दर आदि नामों से पुकारते थे। अगर आप विश्व में कहीं भी हरे राम, हरे कृष्ण का मंत्र जपते लोगों को देखते होंगे तो समझ लेना वह मंत्र चैतन्य महाप्रभु ने दिया है। 

भक्ति में बाधा के कारण छोड़ दिया परिवार

संत चैतन्य ने 14 या 15 साल की उम्र में बल्लभ आचार्य की बेटी लक्ष्मी देवी से शादी हो गई थी। दुर्भाग्य से, सांप द्वारा काटे जाने के बाद वह दुनिया छोड़ गईं। अपनी मां के अनुरोध पर, उन्होंने रजक पंडित सनातन मिशा की बेटी विष्णुप्रिया से दूसरी शादी की थी। लेकिन इस दौरान उनके जीवन में भक्ति के प्रति बाधा आने लगी। आखिरकार, 24 साल की उम्र में, महाप्रभु ने अपना परिवार, घर और गृहनगर छोड़ दिया और संन्यासी या तपस्वी जीवन जीना शुरू कर दिया।

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जीवन के अंतिम 25 वर्ष पुरी के राधाकांत मठ में बिताए

 

संन्यास पर रहते हुए, महाप्रभु ने भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक यात्रा की। पैदल चलकर, भगवान निमाई (चैतन्य महाप्रभु) ने हरे कृष्ण मंत्रों का जाप करते हुए बारानगर, महानगर, अतिसार, छत्रभोग, वृंदावन और पुरी जैसे स्थानों की यात्रा की। ओडिशा के पुरी में, उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 25 वर्ष राधाकांत मठ में बिताए।

महाप्रभु गौरांग का योगदान और सांस्कृतिक प्रभाव

गुरु गौरांग का प्रभाव मुख्य रूप से बंगाल और ओडिशा जैसे स्थानों पर देखा जा सकता है। लोगों ने उन्हें बंगाल के पुनर्जागरण के रूप में भी उद्धृत किया। लोग उन्हें भगवान कृष्ण का साक्षात् अवतार मानकर पूजते हैं। बांग्लादेश में भी चैतन्य प्रभु काफी प्रचलित हैं और अनेक धर्मों के लोग उनको पूजते हैं। 

चैतन्य महाप्रभु ने की थी हरे कृष्ण हरे राम मंत्र की शुरुआत


गौरांग महाप्रभु (चैतन्य महाप्रभु) ने ही कीर्तन परंपरा की शुरुआत की थी। जो गीत, मंत्र, संगीत और महान आनंद के साथ किया जाने वाला पाठ है। श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा है हरे कृष्ण हरे राम कीर्तन भगवान को पाने का एक सबसे सरल और पक्का मार्ग है। चैतन्य प्रभु जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते। महाप्रभु ने अपने उपदेशों, कीर्तन, रासलीला और भजनों के माध्यम से भगवान कृष्ण का नाम दुनिया भर में प्रतिष्ठित किया।

Disclaimer: यहां जो सूचना दी गई है वह सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। यहां यह बताना जरूरी है कि मेरा सनातन डॉट कॉम किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।

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