Iskcon Mandir: वृंदावन का इस्कॉन मंदिर इतना भव्य और दिव्य, जानिए क्या है इसकी खासियत

Iskcon Mandir: वृंदावन का इस्कॉन मंदिर इतना भव्य और दिव्य, जानिए क्या है इसकी खासियत

डिजिटल डेस्क, वृंदावन। इस्कॉन वृन्दावन, जिसे श्री श्री कृष्ण बलराम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया के प्रमुख इस्कॉन मंदिरों में से एक है। इस्कॉन मंदिर उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा शहर के वृंदावन में स्थित एक हिंदू मंदिर है। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम को समर्पित है। यही कारण है कि इस मंदिर को कृष्ण बलराम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह वृंदावन के सभी मंदिरों में सबसे भव्य है जिसकी सुंदरता देखने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक यहां आते हैं। मंदिर के अंदर की नक्काशी, पेंटिंग और चित्रकारी बहुत मनमोहक है और भगवान के जीवन का वर्णन करती है।

इस्काॅन मंदिर मे पूरे वर्ष भक्त बड़ी संख्या में आते है विशेष कर विदेशी पर्यटक। श्री कृष्ण जन्मअष्टमी का त्यौहार बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है। भारतीयों से ज्यादा यहां विदेशी पर्यटक अध्यात्म और ज्ञान की प्राप्ति के लिए आते हैं। इस मंदिर में सभी धार्मिक उत्सवों का आनंद उठाते है जैसे दीपावली पर दीपकों से मंदिर की सजावट हरे कृष्णा हरे राम का संकीर्तन करके होली पर गुलाल होली से रंगारंग कार्यक्रम, फूल होली, लड्डू होली कई कार्यक्रमों को बड़े हर्षोलास से मानते हैं।

इस्कॉन मन्दिर से जुड़ी कहानी

इस्कॉन मंदिर यमुना नदी के किनारे पर स्थित है। माना जाता है कि पांच हजार वर्ष पहले जिस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम अपनी गायों को चराने आते थे, खेला करते थे और गोपियों के साथ लीलाएं करते थे, ठीक उसी स्थान पर इस्कॉन मंदिर का निर्माण किया गया है। यह स्थान श्रीकृष्ण और बलराम के बचपन की विभिन्न कहानियों से जुड़ा हुआ है।

भव्यता और सुंदरता इस मंदिर की विशेषता

इस्कॉन मन्दिर को कृष्ण बलराम मंदिर भी कहते हैं। केसरिया वस्त्रों में हरे रामा–हरे कृष्णा की धुन में तमाम विदेशी महिला–पुरुष यहाँ देखे जाते हैं। 1975 में बने इस्कान मंदिर को श्री कृष्ण बलराम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर ठीक उसी जगह पर बना है, जहां आज से 5000 साल पहले भगवान कृष्ण दूसरे बच्चों के साथ खेला करते थे।


मंदिर में कई सुंदर चित्रकारी की गई है, जिसमें भगवान कृष्ण की शिक्षा का वर्णन किया गया है। यह दूसरे मंदिरों से थोड़ा अलग है। क्योंकि लोग यहां सिर्फ पूजा करने के लिए ही नहीं आते, बल्कि वे यहां आकर साधना और पवित्र श्रीमद् भागवत गीता का पाठ करते हैं।

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसीभी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

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